बच्चे कुछ भी हो जाए आत्महत्या नहीं करना..

कुछ दिनों पहले मेरे ही घर के आस-पास एक १४ वर्षीया बच्ची ने आत्महत्या की.  उसके आत्महत्या का वीडियो हर व्हाट्सप्प ग्रुप में डाला गया, जो की बिलकुल ही असंवेदनशील और गलत था.  सबके दिल दहल गए!  क्या कारण था, अब इसपर बहस करने की ज़रूरत नहीं है.  उस बच्ची की मनोदशा ठीक नहीं थी, इसलिए उसने शायद यह रास्ता अपनाया.  उसके माता पिता की हालत के बारे में सोचकर दिल काँप जाता है मेरा.

मेरे दो युवा होते बच्चे हैं, एक १५ का और एक १० की.  दोनों ज़िन्दगी के बहुत ही नाज़ुक दौर से गुज़र रहे हैं.  आज सुबह जब मैं अपने बेटे का सर सहला रही थी, मुझे उस बच्ची के माँ के बारे में सोचकर रोना आ गया.  फिर कभी वह अपनी लाडली को देख नहीं सकेगी, प्यार से उसका माथा नहीं सहला पाएगी.

आए दिन हम अख़बार में पढ़ते हैं, टीवी पर न्यूज़ देखते हैं की युवा बच्चे आत्महत्या करते हैं, कभी परीक्षा में ख़राब नतीजे की वजह से, कभी प्यार में झगड़े या धोखे की वजह से, कभी माँ बाप पर नाराज़ होकर, इत्यादि.  आज बच्चों को पालना पहले से भी अधिक कठिन हो गया है.  माता-पिता बच्चों से ज़्यादा दोस्ताना रिश्ता रखते हैं, बच्चों को हर चीज़ बिना मांगे ही मिल जाती हैं, उन पर अनुशासन का दबाव नहीं होता, ऐसे में बच्चे भावनात्मक तरीके से कमज़ोर हो जाते हैं.

अपने बच्चों को हमेशा कुछ बातें बताना ज़रूरी है:

१.  ज़िन्दगी में कठिनाइयां, उतर-चढ़ाव, निराशा सब आएंगी, उनका डटकर सामना करना होगा नाकि हार मानना होगा.

२.  जीवन अनमोल है, उसे आत्महत्या करके नहीं गंवाना चाहिए.  मुश्किल से मुश्किल घड़ी ज़रूर टल जाती है.

३.  माता-पिता को अपने बच्चों से हमेशा बातचीत करते रहना चाहिए.  उनके मन में क्या चल रहा है, यह जानना बहुत ज़रूरी है.

४.  बच्चों को भावनात्मक तरीके से सशक्त बनाएं कमज़ोर नहीं.  उन्हें हर मुश्किल से बचाने की कोशिश न करें.  छोटी-छोटी लड़ाईयां खुद लड़ने दें.  इससे वे सशक्त बनते हैं.

५.  आपका बच्चा जैसा है उसे वैसे ही प्यार करें और अपनाएं.  कभी किसी और बच्चे के साथ तुलना न करें.  इससे बच्चों में हीनभावना आ जाती है.

६.  बच्चों से हमेशा कहें की अगर उनसे कोई गलती होती है तो वे आकर आपको बताएं.  आप उनका सही मार्गदर्शन करेंगे.

७.  अगर बच्चे के स्वाभाव में अचानक से परिवर्तन नज़र आये जैसे की गुमसुम रहने या अत्यधिक क्रोधित हो जाना या बिलकुल बात न करना, तो उसे नज़रअंदाज़ न करें.  ज़रूरत हो तो किसी काउंसलर के पास उसे ले जाएं.

८. अपने बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी रखें.  उन्हें मोबाइल, फेसबुक, इंस्टाग्राम इत्यादि के बारे में सचेत करें और सही ज्ञान दें.

९.  हम हमेशा अपने बच्चों के साथ नहीं रह सकते, पर उन्हें बार-बार ये बोलना आवश्यक है की ज़िन्दगी में कितना भी बुरा वक़्त आए, मन कितना भी दुखी हो, आत्महत्या का रास्ता कभी न अपनाए.  उनके माँ-बाप के लिए उनका जीवन अमूल्य है.

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